यह कहानी सत्य तथ्यों पर आधारित है। इसकी नायिका रीमा मेरी एक साहसिक बच्ची है। मैं खुद एक सीनियर पुरुष नागरिक हूँ, और रीमा को अपनी बेटी जैसा मानता हूँ। यह कहानी रीमा के सच्चे अनुभव की है, जिसे रीमा के कथन के आधार पर मैंने लिखा है। मैंने इस कहानी को जैसे रीमा ही कह रही हो उस तरह लिखा है। (indian chudai ki dastan)
कहानी रीमा के शब्दों में:-
मैं रीमा एक शिक्षित गृहिणी हूँ। (indian chudai ki dastan)
मेरे पति एक अच्छी कंपनी में क्षेत्र व्यवस्थापक रीजनल मैनेजर हैं और अच्छा खासा कमाते हैं। हमारा अपना घर है और हम सुख शांति से रहते हैं। मैं देखने में काफी सेक्सी हूँ। सामान्य भारतीय नारी जितनी ही लम्बाई पर आकर्षक चेहरा, भरे हुए चूचे, आकर्षक कूल्हे, घने लम्बे बाल, कामुक आँखें, लम्बी गर्दन, पतली कमर और मटकती चाल किसी भी मर्द को दुबारा देखने पर मजबूर कर देती है।
मैं 28 साल आयु की हूँ और मैं यह नहीं छिपाऊंगी कि मैंने कॉलेज में और शादी से पहले और शादी के बाद भी पर पुरुष सम्भोग किया है। मेरी एक ख़ास सहेली प्रियंका दीदी हैं जो मुझसे उम्र में और तजुर्बे में सीनियर हैं। प्रियंका दीदी देखने में साधारण हैं पर सेक्स के मामले में काफी अग्रसर हैं। (indian chudai ki dastan)
इस क्षेत्र में उनका अनुभव और उनकी जान-पहचान मुझसे कहीं ज्यादा है। मैंने भी प्रियंका दीदी के साथ उनके पति के साथ एक बार और उनके पति और देवर के साथ एक बार सेक्स किया था। हम दोनों एक-दूसरे से कुछ भी छिपाती नहीं।
मेरे पति को मेरे कार्यकलाप के बारे में कुछ कुछ अंदेशा तो था ही, पर उनकी भी अपनी कमजोरियां थीं, जो उनको पता था कि मुझे पता थी। इसलिए हम दोनों तेरी भी चुप मेरी भी चुप का नियम अमल करते थे। मेरे पति बिस्तर में मुझे काफी अच्छी तरह से पेलते हैं और मेरी दुनियादारी की हर जरूरियात वह पूरी करते हैं। (indian chudai ki dastan)
मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है। वह मुझे बहुत अच्छे से चोदते हैं। उनकी कुछ कमजोरियां मैं अच्छे से जान चुकी हूँ और जरूरत पड़ने पर उसका अच्छे से इस्तेमाल करके मैं अपना काम भी निकलवा लेती हूँ।
शादी की सुहागरात को मैं हमारे बैडरूम में मेरे पति का इंतजार कर रही थी। शादी का लाल चटक चमकती साड़ी वाला जोड़ा पहन कर, गहनों से लदी हुई, माथे पर टीका, मांग में सिंदूर, गले में मंगलसूत्र, बड़े घेराव वाला घाघरा और हाथों में नई नवेली दुल्हन का चूड़ा पहने हुए।
जब मेरे पति ने मुझे उस वेशभूषा में देखा, तो आप नहीं मानोगे, मेरे पति का लंड ऐसे खड़ा हो गया कि वह मेरी साड़ी, घाघरा, ब्लाउज, ब्रा निकाल फेंकने का इंतजार भी नहीं कर सके। मेरा घाघरा उठा कर मेरी पैंटी निकाल कर और अपने पाजामे और निक्कर को नीचा कर अपना लंड निकाल कर वह मेरे ऊपर चढ़ गए, और बिना कुछ बात-चीत किये तपाक से मेरी चूत में घुसेड़ दिए, और मुझे पागल की तरह चोदने लगे। (indian chudai ki dastan)
उस बार उन्होंने मुझे इतना चोदा और ऐसा चोदा कि उस चुदाई को मैं आज तक नहीं भुला पायी हूँ। आज भी जब मेरी कहीं तगड़ी चुदाई होती है तो मुझे मेरी सुहागरात की ठुकाई याद आती है। उस रात मेरे पति ने मुझे तीन बार इतना तगड़ा चोदा था, कि दूसरे दिन मुझे चलने में भी दिक्क्त हो रही थी। मैं समझ गयी कि मेरे पति को नई नवेली सजी दुल्हन जैसी वेशभूषा में मुझे देख कर बड़ा जोश आ जाता है और वह अपने आप को रोक नहीं पाते।
तब से जब भी मुझे मेरे पति से कोई काम निकलवाना हो, या उनसे तगड़ी चुदाई करवानी हो, तो मैं वही कपड़े पहन कर उसी तरह सज-धज कर मेरे बैडरूम में मेरे पति का इंतजार करती हूँ। और मेरे पति मुझे उस वेशभूषा में देख कर मेरी जबरदस्त ठुकाई करते हैं, और उस ठुकाई के बाद मेरी हर इच्छा पूरी करते हैं। (indian chudai ki dastan)
मैं भी हमारी चुदाई के समय मेरे पति की हर तरह से सेवा कर देती हूँ। तो उन्हें भी मुझसे कोई शिकायत नहीं है। हम हमारी इस ब्याहेतर अतिरिक्त प्रवृति को एक-दूसरे से छिपा कर यह दिखाने की कोशिश करते हैं जैसे हम दोनों ही एक-दूसरे से पूरी तरह समर्पित और पवित्र हैं। कुछ देखने या सुनने पर भी ना मैं उनके बारे में कोई पूछ-ताछ करती हूँ ना वह मेरे बारे में। वैसे हम दोनों हमारी इस गुप्त अंडरस्टैंडिंग से खुश हैं।
जहां तक घरगृहस्थी सम्हालने की बात है तो मैं हमारा घर, पति और सास-ससुर की अच्छी तरह देखभाल करती हूँ। अपना दायित्व मैं अच्छी तरह से निर्वाह करती हूँ, जिसके कारण मेरे सास ससुर जो हमारे साथ रहते हैं, मुझसे खुश हैं। मेरे पति भी एक पति का सांसारिक दायित्व अच्छे से निभाते रहते हैं। इस तरह हम दोनों एक-दूसरे से बड़े ही खुश हैं। (indian chudai ki dastan)
यह किस्सा तब का है जब हमारी महिलाओं की किटी-पार्टी शहर से थोड़ी दूर एक फार्म हाउस में बने एक रिसोर्ट में दोपहर के समय थी। दोपहर में महिलायें फ्री रहती हैं, और रिसोर्ट में भी हमें “हैप्पी अवर” का डिस्काउंट मिलता था। मैं और मेरी एक सहेली, जिन्हें मैं प्रियंका दीदी कह कर बुलाती थी, के साथ मेरी स्कूटी पर बैठ कर समय से पहले ही रिसोर्ट में पहुँच गए।
मैंने स्कूटी पार्किंग में लगाई, और हम दोनों रिसोर्ट के शीशे के दरवाजे में दाखिल हो रहे थे कि एक बहुत ही हैंडसम और स्मार्ट सूट-बूट टाई पहना काफी संभ्रांत दिखता हुआ एक युवक मोबाइल फ़ोन पर किसी से बात करता हुआ बाहर निकल रहा था, मुझ से टकरा गया।
जब उसका ध्यान मेरी और गया तब मैं नीचे गिरने लगी थी। बड़ी ही चपलता से नीचे झुक कर उसने मुझे एक हाथ से कमर से उठा कर गिरने से बचा लिया। मैं टेढ़ी उसकी बाँह में नरगिस की तरह झुकी हुई खड़ी रह गयी। और वह राजकपूर की तरह मेरे पूरे बदन का वजन उठाते हुए मेरी आँखों में आँखें मिलाता हुआ मंद-मंद मुस्कुरा रहा था। मैंने भी उसकी आँखों में देखा। उसकी शरारत भरी नजर मेरे दिल को छू गयी। (indian chudai ki dastan)
मैंने फ्रॉक पहन रखी थी, जो ऊपर से एक-दम लो कट थी, और मेरे घुटनों से खासी ऊपर तक खतम होती थी। हालांकि उसे अश्लील नहीं कहा जा सकता। मिनी फ्रॉक से ज़रा सी लम्बी पर साधारण फ्रॉक से काफी ऊँची फ्रॉक थी वह। इस फ्रॉक में मेरी करारी, सुगठित, लम्बी जाँघें काफी हद तक दिखती थी।
जब मैं कहीं बैठती थी, तब मुझे काफी समभालना पड़ता था कि मेरी पैंटी कहीं दिख ना जाए। यह फ्रॉक मैं कोई ख़ास पार्टी, नए साल जैसे मौके पर ही पहनती थी। उस फ्रॉक के साथ मैच करती पतली लगभग पारदर्शी जैसी छोटी सी ब्रा मैंने पहन रखी थी। ब्रा में से उभर कर बाहर निकलने को बेताब मेरे स्तनों और उन दो पहाड़ों के बीच की गहरी खाई को उसकी नजरें बड़ी शातिर और कामुकता से एक टक निहार रही थी। (indian chudai ki dastan)
उसके हाथ की उंगलियां मेरे चूचो के किनारों को लगभग छू ही रहीं थीं। यह सब कुछ देर तक चलता रहा। प्रियंका दीदी कुछ देर तक यह देखते ताली बजाते हुए बोल पड़ी, “वाह भाई, यह तो राजकपूर नरगिस वाला सीन हो गया।”
उस युवक से नजरें मिलाते ही जैसे मैं अपना होश खो बैठी। मेरे पाँव ढीले पड़ गए। इतना आकर्षक उस युवक का व्यक्तित्व था। लंबा कद, काले घुंघराले घने बाल, कसरती चौड़ा सीना, गठीली लम्बी बाँहें, पतली कमर, तेज कामुक नजर, सुन्दर चेहरा और नशीली आँखें। मुझे समझ ही नहीं आया कि उसकी आँखों में खोये हुए वैसे ही उसकी बाँहों में मैं कितनी देर झूलती रही। (indian chudai ki dastan)
जब प्रियंका दीदी ने हमें राजकपूर और नरगिस की जोड़ी कह कर तालियां बजायी तब मुझे होश आया कि मैं उसकी बाँहों में झूलती हुई पता नहीं कितनी देर से क्या क्या सपने देख रही थी। मैंने अपनी तंद्रा से बाहर निकलते हुए सीधा खड़े हो कर उससे एक पल के लिए नजरें मिला कर “थैंक यू” कहा और लाज से नजरें निची कर फिर से बुत की तरह वहीं की वहीं खड़ी रही। पता नहीं उस युवक का कैसा व्यक्तित्व, और उसकी मंद मंद मुस्कान कितनी आकर्षक और कामुक थी कि उसे देखते ही मेरे पूरे बदन में काम वासना की एक आग सी भड़क उठी।
तब उस युवक ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर कहा, “मुझे आपको इस तरह टकराने के लिए सॉरी कहना चाहिए। पर मैं थैंक यू कहूंगा, क्योंकि आप निहायत ही खूबसूरत हैं। आप से मिल कर मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरा नाम जतिन है। मैं मुंबई से आया हूँ। यहां ऊपर कांफ्रेंस हॉल में हमारी एक सेमीनार चल रही है और मैं यहाँ कमरा नंबर 102 में रुका हुआ हूँ। हमारी सेमीनार 3 बजे तक चलेगी।” (indian chudai ki dastan)
मैं उस युवक की बात सुन कर हैरान रह गयी। मैंने तो उसके बारे में कुछ नहीं पूछा था। पर उसने तो अपनी पूरी जन्मपत्री ही मुझे कह डाली। वैसे तो मैं बड़ी शर्मीली हूँ, पर जब मूड में होती हूँ तो मुझे मेरे जानने वाले मुझे नाक चढ़ी कहते हैं। मतलब जब मैं मस्ती में होती हूँ तब जो बोलना है बोल देती हूँ।
पता नहीं क्यों मुझे उस अनजान युवक (34 से 36) वर्ष के बीच की आयु का होगा वह) से कुछ ऐसा निकट पन महसूस हुआ कि मैंने उनका हाथ थाम कर शेक हैंड करते हुए कहा, “मुझे गिरते हुए बचाने के लिए धन्यवाद। मैं रीमा हूँ और यह मेरी सहेली प्रियंका दीदी हैं। यहीं इस रिसोर्ट में हमारी किटी-पार्टी है तो आयी हूँ और मैं यहीं शहर मैं रहती हूँ।”
जतिन ने मेरा हाथ थामे रखा और उसे हिलाते हुए कहा, “रीमा, हमारी सेमिनार और तुम्हारी किटी-पार्टी ख़तम हो जाए तब अगर आप मेरे साथ चाय पिएंगी, तो मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। मैं तैराक हूँ, और सेमीनार के बाद मैं स्विमिंग पूल में तैरने जाऊंगा, और वहीं मिलूंगा।”
यह कहते हुए वह युवक बाहर जाने के लिए चल पड़ा। हमने रिसोर्ट में प्रवेश कर और सारी सहेलियों से मिल कर जम कर किटी-पार्टी को एन्जॉय किया। हमें फ्री होते हुए करीब साढ़े तीन बज गए। जब सारी सहेलियां चली गयी, तब मैं और प्रियंका दीदी जतिन से मिलने निकले। (indian chudai ki dastan)
राजन ने हमें स्विमिंग पूल पर मिलने के लिए बोला था। जब हम वहाँ पहुंचे तो जतिन छोटी सी स्विमिंग की निक्कर पहने हुए फुर्ती से एक छोर से दूसरे छोर तैर रहे थे।
उनको तैरते हुए देख कर मुझे कोई शक नहीं रहा कि वह एक प्रशिक्षित तैराक थे। हमें देखते ही उन्होंने हाथ हिलाया और हमें भी स्विमिंग पूल में आने के लिए इशारा करने लगे। जतिन को देखते ही मेरा बहुत मन किया मैं उसी समय पूल में कूद पडूँ, और जतिन के साथ पानी में कुछ जल क्रीड़ा कर पाऊं। जैसे जतिन से टकराते समय मेरे पाँव ढीले पड़ गए थे, ना सिर्फ वैसे ही उस समय भी हुआ; बल्कि मेरी चूत भी गीली हो गयी। हमारे पास कोई तैरने का कॉस्च्यूम तो था नहीं। लिहाजा हम कैसे तैरने जाते?
उस समय स्विमिंग पूल सुनसान था। आस-पास में कोई भी और नहीं था। मैं और दीदी स्विंमिंग पूल के बिल्कुल किनारे पर ही एक चारों तरफ से खुला ऊपर से छत वाला शेड बना था, वहाँ लम्बी कुर्सियां रखी थीं, उन पर जा कर बैठे और हमने अपने लेडीज पर्स वहाँ बाजू में रखे। मैंने जतिन से इशारा करते हाथ हिलाते हुए ऊँची आवाज़ में कहा, “मुझे तैरना नहीं आता, और मेरे पास कोई कॉस्च्यूम भी नहीं। मैं पूल में नहीं आ सकती। आप बाहर आ जाओ।” (indian chudai ki dastan)
कहानी का दूसरा भाग : dastan indian chudai ki
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