बेटी को उसके पापा से चुदवाया 1-Maa ne baap se beti chudwai

बेटी को उसके पापा से चुदवाया 1-Maa ne baap se beti chudwai

Maa ne baap se beti chudwai :- मेरा नाम चारवी है। मैं 40 साल की एक आत्मविश्वासी और समझदार महिला हूं। मेरे परिवार में मेरे पति संतोष और मेरी 20 साल की बेटी सिफ़िया हैं। संतोष और मेरी शादी को 22 साल हो चुके हैं। हमारी जिंदगी अब तक सामान्य रही है, लेकिन मैं हमेशा से एक खुले विचारों वाली महिला रही हूं।

मेरी बेटी सिफ़िया अब जवान हो चुकी है। उसका भरा-भरा बदन और मासूम चेहरा किसी को भी उसकी तरफ खींच सकता है। वह इतनी खूबसूरत हो गई है कि हर बार उसे देखते हुए मुझे उसकी सुरक्षा को लेकर चिंता होती है। लेकिन साथ ही, मैं यह भी जानती हूं कि एक उम्र ऐसी होती है जब घर के मर्द—चाहे वह बाप हो या भाई—एक लड़की को सिर्फ बेटी या बहन के रूप में नहीं, बल्कि एक औरत के रूप में देखने लगते हैं।

मैं अक्सर इंटरनेट पर चुदाई की कहानियां पढ़ती हूं। इन कहानियों में रिश्तों के अलग-अलग रूपों को देखकर मेरा नजसिफ़िया और भी खुला हो गया है। मैंने कई बार बाप-बेटी के रिश्ते और उनकी कहानियां पढ़ी हैं। मुझे हमेशा यह एहसास हुआ कि अगर इन रिश्तों को सही तरीके से संभाला जाए, तो यह गलत नहीं है।

सिफ़िया अब 20 साल की हो चुकी है। वह कॉलेज जाती है, लेकिन उसकी चाल-ढाल और खूबसूरती ने घर में एक अजीब सा माहौल बना दिया है। मैंने देखा है कि संतोष की नजरें अब उस पर टिकने लगी हैं। जब भी वह घर में शॉर्ट्स या टी-शर्ट पहनकर आती है, संतोष की आंखें उसके पैरों और उभरे हुए बदन पर अटक जाती हैं।

एक दिन की बात है। सिफ़िया कॉलेज से लौटी थी और अपने कमरे में चली गई। उसने गुलाबी रंग की शॉर्ट टी-शर्ट और छोटे शॉर्ट्स पहन रखे थे। उसकी चाल और उसकी बेपरवाह मुस्कान देखकर कोई भी उसे देखकर मदहोश हो सकता था। मैं किचन में चाय बना रही थी और यह सब चुपचाप देख रही थी।

कुछ देर बाद, मैंने देखा कि संतोष धीरे-धीरे सिफ़िया के कमरे की तरफ गया। दरवाजा थोड़ा खुला था। उसने अंदर झांका और फिर दरवाजे पर दस्तक दी। सिफ़िया ने अंदर से कहा, “हां, पापा?”

संतोष ने बहाना बनाया, “तुम्हारी अलमारी का लॉक सही कर दूं? तुमने सुबह कहा था कि यह ठीक से बंद नहीं हो रहा।”
सिफ़िया ने जवाब दिया, “हां पापा, कर दीजिए।”

संतोष ने अलमारी खोली और अंदर कुछ देखने का नाटक करने लगा। उसकी नजरें बार-बार सिफ़िया पर जा रही थीं, जो बिस्तर पर बैठकर किताब पढ़ रही थी। फिर मैंने देखा कि संतोष ने अलमारी से सिफ़िया की हल्की गुलाबी पैंटी उठाई और उसे अपनी जेब में रख लिया।

मैं यह सब दरवाजे के पीछे से देख रही थी। मेरे अंदर गुस्सा नहीं, बल्कि एक अलग सा उत्साह पैदा हुआ। मैं जानती थी कि संतोष के मन में सिफ़िया के लिए अब पिता वाला प्यार नहीं, बल्कि एक मर्द की चाहत जाग चुकी है।

उस रात जब सिफ़िया सोने चली गई, मैंने संतोष से बात करने का फैसला किया।

हम दोनों अपने कमरे में थे। मैंने कहा, “संतोष, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।”
वह थोड़ा असहज हो गया। “क्या हुआ, चारवी?”

मैंने उसकी आंखों में देखा और कहा, “तुम्हें लगता है कि मैं कुछ नहीं देखती? मैंने आज तुम्हें सिफ़िया के कमरे में देखा। जब तुमने उसकी पैंटी अलमारी से निकाली और अपनी जेब में रखी। अब सच-सच बताओ, तुमने उसके साथ क्या किया?”

संतोष घबरा गया और कुछ देर चुप रहा। फिर उसने कहा, “चारवी, मुझे खुद समझ नहीं आता कि मेरे साथ क्या हो रहा है। सिफ़िया अब इतनी बड़ी हो गई है कि मैं उसे कभी-कभी ऐसी नजरों से देख लेता हूं, जो नहीं देखनी चाहिए। मैं खुद को रोकने की कोशिश करता हूं, लेकिन…”

बेटी को उसके पापा से चुदवाया 1-Maa ne baap se beti chudwai

मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, “लेकिन रोक नहीं पाते। मुझे सब पता है। और मैं इसे गलत नहीं मानती। अगर तुम्हारे मन में सिफ़िया को चोदने का ख्याल है, तो इसे स्वीकार करना बेहतर है।”

फिर मैंने उसके कान के पास धीरे से पूछा, “लेकिन एक बात सच-सच बताना, संतोष। क्या तुम सिफ़िया की चुदाई करना चाहते हो?”

संतोष ने मेरी बात सुनकर हैरानी और हल्की शर्मिंदगी से मेरी तरफ देखा और कहा, “चारवी, तुम कैसी बातें कर रही हो? यह सब… यह तो गलत है।”

मैंने उसकी ओर शांत स्वर में देखा और कहा, “मैं वही बात कर रही हूं, जो तुम सोचते हो। देखो, हमारी बेटी अब जवान हो गई है। उसकी खूबसूरती ऐसी है कि हर कोई उसकी तरफ आकर्षित हो रहा है। यह जाहिर सी बात है कि कई लड़के उसके पीछे होंगे। तुम खुद जानते हो कि आजकल कैसे लड़कियों के वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाते हैं।”

मैंने अपनी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा, “अगर उसे घर में ही संतुष्टि और मार्गदर्शन मिल जाए, तो हमें बाहर की दुनिया की चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। और एक और बात, संतोष। मैं इसे केवल एक जिम्मेदारी की तरह नहीं देख रही हूं। सच कहूं, तो मैं खुद बाप-बेटी की चुदाई को लेकर बेहद उत्साहित हूं। यह सोचकर ही मेरा मन मचल रहा है। अगर तुम इसके लिए तैयार हो, तो मैं अगले कदम के लिए काम शुरू कर देती हूं। लेकिन एक शर्त है—जो भी होगा, वह मेरी मौजूदगी में होगा।”

संतोष ने थोड़ी झिझक और हल्की मुस्कान के साथ कहा, “ठीक है। अगर तुम भी राजी हो, तो फिर मुझे भी कोई ऐतराज नहीं है। मैं तुम्हारे साथ हूं।”

यह सुनकर मैंने राहत की सांस ली। मुझे यकीन हो गया था कि अब सबकुछ ठीक से आगे बढ़ सकता है। मैंने संतोष को समझाया, “मैं सिफ़िया से बात करूंगी। उसे यह बताने के लिए एक कहानी बनानी होगी। मैं उसे समझाऊंगी कि हमारे परिवार में एक प्रथा है, जो हर बेटी के 21वें जन्मदिन पर निभाई जाती है। इस प्रथा में पिता अपनी बेटी को एक खास आशीर्वाद देते हैं, जो उसकी आने वाली जिंदगी के लिए शुभ माना जाता है। यह प्रथा हर परिवार में नहीं होती, लेकिन हमारे परिवार में यह बेहद खास है। इसलिए हमें इसे निभाना होगा।”

संतोष ने मेरी बात सुनकर सहमति में सिर हिलाया और कहा, “ठीक है, चारवी। तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा करूंगा।” उसकी बात सुनकर मुझे यकीन हो गया कि अब सबकुछ मेरी योजना के मुताबिक होगा।

अगली सुबह रविवार का दिन था। सिफ़िया मेरे पास बैठी थी और अपने मोबाइल पर कुछ देख रही थी। मैं धीरे-धीरे उसके पास बैठ गई और मुस्कुराते हुए उससे कहा, “बेटी, परसों तुम्हारा जन्मदिन है, और यह जन्मदिन बेहद खास होने वाला है।”

सिफ़िया ने उत्साहित होकर पूछा, “कैसे खास, मां? क्या हम कुछ अलग करेंगे?”

मैंने उसे शांत स्वर में समझाते हुए कहा, “हां, इस बार तुम्हारा जन्मदिन घर पर नहीं मनाया जाएगा। हम एक खास स्थान पर जाएंगे और वहां एक प्रथा का पालन करेंगे। यह एक ऐसा प्रतिष्ठान है, जो हमारे परिवार में 21वें जन्मदिन पर निभाया जाता है।”

सिफ़िया ने उत्सुकता से पूछा, “कैसा प्रतिष्ठान, मां? मुझे और बताओ।”

मैंने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “यह एक बहुत खास प्रथा है। जब बेटी 21 साल की हो जाती है, तो पिता उसे एक विशेष आशीर्वाद देते हैं। यह आशीर्वाद उसकी शादीशुदा जिंदगी को सुखमय बनाने के लिए जरूरी माना जाता है। हालांकि, यह हर परिवार में नहीं होता, लेकिन हमारे परिवार में यह हमेशा से होता आया है। इसलिए तुम्हें इसे करना होगा।”

सिफ़िया थोड़ी असमंजस में थी, लेकिन उसने सिर हिलाते हुए कहा, “ठीक है, मां। अगर यह हमारे परिवार की परंपरा है, तो मुझे इसे करना होगा।”

मैंने उसे और गंभीरता से समझाते हुए कहा, “लेकिन बेटी, यह प्रतिष्ठान इतना आसान नहीं है। इसमें तुम्हें पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ भाग लेना होगा। और एक बात याद रखना, अगर यह प्रतिष्ठान सही तरीके से नहीं हुआ, तो इसका असर तुम्हारे शादीशुदा जीवन पर पड़ेगा। इसका मतलब यह है कि अगर यह ठीक से नहीं हुआ, तो तुम्हारी शादी के बाद तुम्हारा जीवन कठिन हो सकता है।”

सिफ़िया के चेहरे पर हल्की घबराहट दिखने लगी। उसने डरते हुए कहा, “मां, मैं पूरी कोशिश करूंगी कि यह प्रतिष्ठान सही तरीके से हो। लेकिन मुझे यह ठीक से समझा दो कि मुझे इसमें क्या करना होगा।”

मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए मुस्कुराकर कहा, “तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। तुम्हारे पापा और मैं तुम्हें हर कदम पर गाइड करेंगे। बस, तुम्हें हमारी बात माननी होगी और जो कहा जाए, वह पूरी श्रद्धा से करना होगा।”

उसने धीरे से सिर हिलाया और कहा, “ठीक है, मां। मैं पूरी तरह से तैयार हूं।”

मुझे यकीन था कि सिफ़िया को पूरी तरह विश्वास दिलाने के लिए इस प्रथा को असली और पारंपरिक दिखाना होगा। मैंने अपने दिमाग में एक योजना बनाई। पुरानी चीज़ों को वास्तविक और प्रभावी दिखाने का सबसे अच्छा तरीका है पुराने कागजात या दस्तावेज़ का इस्तेमाल करना।

मैंने एक पुराना कागज लिया, जिसे मैंने जानबूझकर हल्का पीला और जर्जर बना दिया ताकि वह पुराना लगे। उस पर मैंने बहुत सावधानी से पारंपरिक शब्दावली में इस प्रथा का वर्णन लिखा। कागज को ऐसा दिखाया, जैसे यह हमारे परिवार की कई पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा का हिस्सा हो।

मैंने लिखा:
“प्रथा: बेटी का 21वें जन्मदिन पर योनि पूजन और लिंग पूजन”

  1. “इस प्रथा के अनुसार, जब बेटी 21 वर्ष की हो जाती है, तो उसके विवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए योनि पूजन पिता के द्वारा किया जाता है।”
  2. “तत्पश्चात, पिता का लिंग पूजन बेटी के द्वारा किया जाता है।”
  3. “इस पवित्र कर्म के अंत में, पिता के लिंग से निकलने वाले वीर्य को बेटी को ग्रहण करना होता है, जिससे उसे सुखी और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद मिलता है।”

मैंने इस कागज पर थोड़ा सा धब्बे लगाए और किनारों को हल्का फाड़कर उसे ऐसा बना दिया, जैसे यह वर्षों पुराना दस्तावेज़ हो।

उसके बाद, मैंने संतोष से बात की। मैंने कहा, “संतोष, कल हमें अपने गांव के पुराने घर पर जाना होगा। वही जगह इस कार्यक्रम के लिए सबसे सही होगी। मैं चाहती हूं कि सिफ़िया को यह सब पूरी तरह से सच लगे। हमें यह ऐसा दिखाना होगा, जैसे यह एक बहुत पुरानी और महत्वपूर्ण परंपरा है।”

संतोष ने मेरी बात ध्यान से सुनी और पूछा, “गांव क्यों, चारवी? क्या यहीं पर नहीं कर सकते?”

मैंने उसे समझाया, “नहीं, संतोष। अगर हम इसे यहीं करेंगे, तो यह एक साधारण घटना लगेगी। गांव का घर और वहां का माहौल इसे और असली बनाएगा। वहां का माहौल सिफ़िया को यह यकीन दिलाने के लिए सबसे उपयुक्त है। और सुनो, यह बहुत जरूरी है कि एक बार सिफ़िया इस रस्म को पूरी श्रद्धा से कर ले। जब उसे चुदाई का मजा मिल जाएगा और वह इसे महसूस कर लेगी, तब उसे सच बताने में कोई दिक्कत नहीं होगी कि यह सब हमारी बनाई हुई योजना थी। लेकिन उससे पहले, हमें इसे पूरी तरह वास्तविक दिखाना होगा।”

संतोष ने सहमति में सिर हिलाया और हल्की मुस्कान के साथ कहा, “तुम ठीक कह रही हो। मैं तुम्हारे साथ हूं। जैसा तुमने सोचा है, वैसा ही करेंगे।”

उस रात मैं इस योजना को और पुख्ता करने के लिए सोचती रही। मुझे यकीन था कि गांव का घर, वहां का शांत और अलग माहौल, और हमारी बनाई हुई यह कहानी सिफ़िया को पूरी तरह से इस रस्म में विश्वास दिलाएगी।

अगले सुबह, हम गांव के घर के लिए निकल पड़े। रास्ते में मैंने पहले से ही सारी तैयासिफ़ियां कर ली थीं। मैंने संतोष से कहा कि हमें कुछ दवाइयां, दर्दनिवारक और जरूरी चीजें जैसे कंडोम और आईपिल भी रख लेनी चाहिए। यह सब मैंने छुपाकर रखवाया, ताकि सिफ़िया को कुछ भी शक न हो।

रास्ता लंबा था, लेकिन गांव की हवा में एक अलग ही ताजगी थी। यह जगह सालों बाद आना हुआ था, और यहां का शांत माहौल मेरी योजना के लिए बिल्कुल सही था। जैसे ही हम गांव पहुंचे, हमने आसपास की जगहों को देखने और घूमने का फैसला किया। यह सब सिफ़िया के लिए भी एक तरह से अनुभव का हिस्सा था, ताकि वह इसे पूरी तरह से परंपरा का हिस्सा माने।

घूमते-घूमते शाम हो गई। मैं जानबूझकर हर चीज को धीमी गति से और व्यवस्थित तरीके से कर रही थी। जब हम घर लौटे, मैंने सिफ़िया से कहा, “बेटी, अब तुम जाकर नहा लो और फ्रेश हो जाओ। यह प्रथा आज रात ही होगी।”

सिफ़िया ने सिर हिलाया और अपने कपड़े लेकर बाथरूम की तरफ चली गई। तभी मैंने उसे रुकते हुए कहा, “और सुनो, यह मत भूलना कि तुम्हें अपने शरीर के हर हिस्से के बाल भी हटाने होंगे।”

उसने चौंकते हुए मेरी तरफ देखा और पूछा, “मां, हर हिस्से के बाल? क्यों?”

मैंने गंभीरता से कहा, “बेटी, यह प्रथा बहुत पवित्र है। अगर तुम्हारे शरीर पर कहीं भी बाल रह गए, तो इसे अपवित्र माना जाएगा। तुम्हें पूरी तरह से शुद्ध और तैयार होना होगा।”

उसने थोड़ी झिझक के साथ कहा, “ठीक है, मां।”

मैंने उसे एक हेयर रिमूवल क्रीम दी और समझाया कि इसे कैसे इस्तेमाल करना है। सिफ़िया ने इसे लिया और हल्की मुस्कान के साथ बाथरूम की तरफ चली गई। मैं जानती थी कि यह सब उसके लिए थोड़ा असामान्य लग रहा होगा, लेकिन मैं उसकी हर झिझक को धीरे-धीरे दूर करना चाहती थी।

संतोष ने गांव के मार्केट में जाकर सिफ़िया के जन्मदिन के लिए केक का ऑर्डर दे दिया। दुकानदार ने कहा कि यह एक घंटे में तैयार होकर डिलीवर हो जाएगा। इस बीच, मैंने घर में बाकी तैयासिफ़ियां पूरी कर ली थीं। माहौल को पूरी तरह से पारंपरिक और खास दिखाने के लिए मैंने हर छोटी-बड़ी बात का ध्यान रखा।

अब सबकुछ तैयार था। मैंने सोचा कि अगर यह प्रथा पूरी तरह से सफल होनी है, तो इसमें हर किसी को शुद्ध और साफ-सुथरा होना चाहिए। इसलिए, मैंने खुद को भी पूरी तरह से तैयार किया। मैंने बाथरूम में जाकर अपने शरीर के हर हिस्से के बाल साफ कर लिए, ताकि मैं भी पूरी तरह पवित्र दिखूं।

बाथरूम से निकलने के बाद, मैंने संतोष की तरफ देखा और कहा, “सुनो, संतोष। अगर यह प्रथा पूरी तरह सफल होनी है, तो तुम्हें भी अपने हर हिस्से को साफ करना होगा। यह सिर्फ सिफ़िया के लिए नहीं है, बल्कि तुम्हारे लिए भी जरूरी है।”

संतोष थोड़ा झिझका, लेकिन उसने मेरी बात मानी। “ठीक है, चारवी। मैं भी यह कर लूंगा। अगर यह सब तुम्हारी योजना का हिस्सा है, तो मैं पूरी तरह से तैयार हूं।”

मैंने उसे शेविंग क्रीम और रेजर दिया और कहा, “हर जगह साफ करना, कोई भी हिस्सा छूटना नहीं चाहिए। यह सिर्फ पवित्रता के लिए नहीं, बल्कि अनुभव को सही तरीके से करने के लिए भी जरूरी है।”

संतोष ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया और बाथरूम की तरफ चला गया।

रात के 11 बज चुके थे। घर के अंदर का माहौल अब पूरी तरह से शांत और गंभीर था। मैंने सिफ़िया को बुलाया और उसे पास बिठाते हुए कहा, “देखो बेटी, चाहे कुछ भी हो जाए, तुम्हें हम पर भरोसा रखना होगा। जो कुछ भी हम करेंगे, वह तुम्हारे भले के लिए होगा। हो सकता है कि तुम्हें यह शुरुआत में अजीब लगे या अच्छा न लगे, लेकिन बाद में तुम्हें समझ में आएगा कि यह सब तुम्हारे लिए कितना जरूरी था।”

सिफ़िया थोड़ी कंफ्यूज दिखी, लेकिन उसने सिर हिलाते हुए कहा, “ठीक है, मम्मी। मैं आप पर भरोसा करती हूं।”

यह सुनकर मैंने राहत की सांस ली। इसके बाद मैं घर के हर दरवाजे और खिड़कियां बंद करने चली गई। मैंने मुख्य गेट भी लॉक कर दिया, ताकि किसी भी बाहरी हस्तक्षेप की संभावना न रहे। घर का माहौल अब पूरी तरह से बंद और सुरक्षित था।

हम तीनों एक कमरे में बैठे थे। घड़ी में रात के 12 बजने वाले थे। मैंने माहौल को और गंभीर बनाने के लिए मोमबत्तियां और अगरबत्तियां जलाईं। जब सबकुछ तैयार हो गया, तो मैंने अपना ‘खेल’ शुरू किया।

मैंने अपने पास से वह पुराना कागज निकाला, जिसे मैंने पहले से ही तैयार किया था। मैंने कागज सिफ़िया की तरफ बढ़ाया और कहा, “यह हमारी पुरानी डायरी में मिला था। इसे पढ़ो और देखो कि इसमें क्या लिखा है। यही वजह है कि हमें यह प्रथा करनी होगी।”

सिफ़िया ने कागज लिया और उसे ध्यान से पढ़ने की कोशिश की। थोड़ी देर बाद उसने कहा, “मम्मी, मुझे इसमें लिखा हुआ कुछ खास समझ नहीं आ रहा। यह पुरानी हिंदी में लिखा है।”

यह सुनकर मैंने संतोष की तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा, “संतोष, इसे तुम पढ़कर सुनाओ। शायद तुम इसे सिफ़िया को समझा सको।”

संतोष ने कागज लिया और उसे ध्यान से पढ़ते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा, “यह बहुत आसान है, लेकिन थोड़ा सा ज्यादा ही खुले विचारों वाला है।”

सिफ़िया ने उत्सुकता से पूछा, “पापा, इसमें क्या लिखा है? आप मुझे समझाइए।”

संतोष ने कागज को देखते हुए गंभीर स्वर में कहा, “इसमें लिखा है कि 21वें जन्मदिन पर बेटी का योनि पूजन उसके पिता के द्वारा किया जाना चाहिए। यह प्रथा बेटी के जीवन को सफल और सुखी बनाने के लिए जरूरी है। इसके बाद पिता का लिंग पूजन बेटी के द्वारा किया जाएगा, और अंत में इस प्रक्सिफ़िया का समापन पवित्र रस ग्रहण करने से होगा। यही रस बेटी के विवाहिक जीवन को सुखद और समृद्ध बनाता है।”

सिफ़िया ने यह सुनकर चौंकते हुए हमारी तरफ देखा। उसने हिचकिचाते हुए पूछा, “मम्मी, पापा… यह सब क्या है? यह तो…”

मैंने उसकी बात काटते हुए शांत स्वर में कहा, “बेटा, मैं समझती हूं कि यह तुम्हारे लिए नया और अजीब है। लेकिन यह प्रथा हमारे परिवार में पीढ़ियों से चली आ रही है। और यह तुम्हारे भले के लिए ही है। तुमने हम पर भरोसा किया है, और हमें पता है कि हम क्या कर रहे हैं। बस, हमें तुम्हारा सहयोग चाहिए।”

सिफ़िया ने थोड़ी देर सोचा, फिर हल्की घबराहट के साथ कहा, “ठीक है, मम्मी। अगर यह हमारे परिवार की परंपरा है, तो मैं इसे निभाने के लिए तैयार हूं। लेकिन… यह थोड़ा मुश्किल लग रहा है।”

मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, “चिंता मत करो, बेटा। हम हर कदम पर तुम्हारे साथ हैं। और हम इसे सही और सहज तरीके से करेंगे। बस हमें तुम्हारा विश्वास चाहिए।”

सिफ़िया ने सिर झुकाकर हामी भर दी। मैंने संतोष की तरफ देखा, और उसने भी मुझे आश्वासन देते हुए सिर हिलाया। अब सबकुछ तैयार था। हमने तय किया कि यह प्रक्सिफ़िया अब शुरू की जाएगी।

मैं सिफ़िया के पास गई और उसका टॉप उतारने लगी। पहले तो उसने थोड़ा विरोध किया, लेकिन फिर वह शांत हो गई और कुछ नहीं कहा। मैंने उसके शरीर से टॉप पूरी तरह उतार दिया और फिर उसकी ब्रा की तरफ बढ़ी। मैंने उसकी ब्रा भी उतार दी, और उसके 34 के भरे हुए चूची अब खुले में हवा में झूल रहे थे।

यह नज़ारा देखकर संतोष की आंखों में एक अजीब सी चमक आ गई, जैसे उसकी सभी इच्छाएं पूरी होने वाली हों।

मैंने संतोष की तरफ देखा और कहा, “तुम भी अपने कपड़े उतारो, समय बर्बाद मत करो।”

इतना कहकर, मैंने सिफ़िया की जींस खोलना शुरू कर दिया। उसने हल्का विरोध किया, लेकिन मैं जानती थी कि उसे तैयार करना मेरी ज़िम्मेदारी थी। मैंने धीरे-धीरे उसकी जींस को नीचे खींचा और पूरी तरह उतार दिया। अब वह सिर्फ अपनी पैंटी में थी।

उसकी पैंटी हल्की गीली हो रही थी, और मैं समझ गई कि सब कुछ सही दिशा में जा रहा है। मैंने उसकी पैंटी के किनारे पकड़े और उसे धीरे-धीरे उतार दिया। पैंटी को उतारकर मैंने किनारे रख दिया और उसकी तरफ मुस्कुराते हुए कहा, “तुम बिल्कुल तैयार हो।”

उधर, संतोष भी अपने सारे कपड़े उतार चुके थे। अब वह पूरी तरह से नंगे थे, और उनका लंड लगभग खड़ा हुआ था। उनका 8 इंच का मोटा लौड़ा हवा में झूल रहा था, मानो वह बस सिफ़िया के लिए ही तैयार हो। यह देखकर सिफ़िया हल्का सा शरमा गई और उसने अपनी नजरें झुका लीं।

मैंने इस माहौल को और सहज बनाने के लिए पास ही में रखा पूजा का सामान उठाया। मैंने संतोष की तरफ बढ़ते हुए कहा, “चलो, जल्दी से योनि पूजा संपन्न करो। इससे सबकुछ शुभ होगा।”

संतोष ने मेरी बात सुनी और पूजा का सामान लेकर सिफ़िया के पास बैठ गए। सिफ़िया अभी भी थोड़ा झिझक रही थी, लेकिन मैं उसकी तरफ मुस्कुराते हुए बोली, “डरने की कोई जरूरत नहीं है, यह हमारे परिवार की परंपरा है। सबकुछ ठीक होगा।”

सिफ़िया ने मेरी बात सुनकर धीरे-धीरे अपनी झिझक कम की और खुद को स्थिति के लिए तैयार किया।

संतोष ने धीरे-धीरे सिफ़िया की चूत पर अपनी उंगलियां फेरीं। उसकी उंगलियां बेहद नर्मी से सिफ़िया की त्वचा को छू रही थीं, जैसे वह हर स्पर्श का आनंद ले रहा हो। उसने दिखावे के लिए पास में रखी अगरबत्ती जलाई, लेकिन उसकी असली नीयत सिर्फ सिफ़िया के बदन को महसूस करने की थी।

उसने चूत के बाहरी हिस्से को हल्के-हल्के मसलना शुरू किया, और फिर अपनी उंगलियों से उसके नाजुक हिस्से को सहलाने लगा। सिफ़िया का शरीर हल्का सा सिहरने लगा, और उसकी सांसें तेज हो गईं। उसकी आंखें शर्म से झुकी हुई थीं, लेकिन उसके शरीर की प्रतिक्सिफ़िया कुछ और ही बयां कर रही थी।

मैंने पास जाकर सिफ़िया को सहारा दिया और धीरे से उसकी टांगों को फैलाते हुए उसे आराम से बैठा दिया। मैंने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा, “सबकुछ ठीक है। खुद को इस पल में बहने दो। यह तुम्हारे लिए ही है।”

संतोष ने अब अपनी उंगलियों से चूत के गीलेपन को महसूस करना शुरू किया। उसकी हरकतें धीरे-धीरे तेज हो रही थीं, और वह इस पल में पूरी तरह खो गया था। सिफ़िया के चेहरे पर हल्की सी बेचैनी थी, लेकिन उसकी सांसों की तेज़ी और हल्की कराहटें कुछ और ही बयान कर रही थीं।

मैंने सिफ़िया की तरफ देखा, उसकी झुकी हुई नजरों में थोड़ी झिझक थी, लेकिन मैंने उसे प्यार से सहारा दिया। उसकी सांसें तेज थीं, लेकिन मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, “अब तुम्हें अपने पापा की लिंग पूजा करनी होगी। यह एक पवित्र परंपरा है। खुद को रोकने की जरूरत नहीं, यह सब हमारे परिवार के लिए है।”

संतोष ने थोड़ा पीछे हटते हुए अपने खड़े लंड को सिफ़िया के सामने कर दिया। उसका 8 इंच का मोटा और सख्त लंड हवा में झूल रहा था। सिफ़िया ने हल्के से अपनी नजर ऊपर उठाई, और जैसे ही उसने लंड को देखा, वह शरमाते हुए नजरें झुका ली।

मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “डरने की कोई जरूरत नहीं है। यह पूजा तुम्हारे और हमारे परिवार के भविष्य के लिए है। बस अपनी झिझक छोड़ दो।”

धीरे-धीरे सिफ़िया ने अपने हाथ आगे बढ़ाए और संतोष के लंड को हल्के से छू लिया। उसके हाथों की नर्मी को महसूस करते ही संतोष की सांसें गहरी हो गईं। मैंने सिफ़िया को गाइड करते हुए कहा, “अब अपने दोनों हाथों से पकड़ो और लिंग को नीचे से ऊपर की ओर सहलाओ। यही लिंग पूजा का सही तरीका है।”

सिफ़िया ने मेरी बात मानी और दोनों हाथों से लंड को पकड़ लिया। उसने नीचे से ऊपर की ओर धीरे-धीरे लंड को रगड़ना शुरू किया। संतोष अपनी जगह पर खड़ा था, और उसके चेहरे पर एक अजीब सी तृप्ति झलक रही थी।

मैंने कहा, “अब अपनी जीभ से स्पर्श करो। लिंग पूजा में यह बहुत जरूरी है। इससे पूरी प्रक्सिफ़िया पूरी होती है।”

सिफ़िया ने थोड़ा झिझकते हुए अपनी जीभ बाहर निकाली और धीरे-धीरे संतोष के लंड की टिप को चाटना शुरू किया। यह देखते ही संतोष के मुंह से हल्की कराहट निकल गई।

मैंने उसे और प्रोत्साहित करते हुए कहा, “बहुत अच्छा कर रही हो। इसी तरह जारी रखो।”

सिफ़िया अब लंड को अपने मुंह में लेने की कोशिश कर रही थी। मैंने उसे गाइड किया और कहा, “आराम से। धीरे-धीरे। कोई जल्दबाजी नहीं।”

बेटी को उसके पापा से चुदवाया 1-Maa ne baap se beti chudwai

संतोष ने हल्के से सिफ़िया के सिर पर हाथ रखा और उसे प्रोत्साहित किया। सिफ़िया अब पूरी तरह से इस प्रक्सिफ़िया में शामिल हो चुकी थी। उसके होंठ लंड को गहराई तक समेटने की कोशिश कर रहे थे, और उसकी जीभ हर स्पर्श को जीवंत बना रही थी।

मैंने पास खड़े होकर देखा और कहा, “यह पूजा अब पूरी होने वाली है। सिफ़िया, तुमने बहुत अच्छा किया।”

मैंने सिफ़िया की तरफ देखा, उसके चेहरे पर अभी भी हल्की झिझक थी, लेकिन उसकी आंखों में अब एक नई समझ झलक रही थी। मैंने प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “अब अगला कदम उठाने का वक्त है। तुम्हें अब अपने पापा के चेहरे पर बैठना होगा। यह भी पूजा का एक हिस्सा है, और इससे तुम्हें और भी ज्यादा आराम और आनंद मिलेगा।”

संतोष पहले ही बिस्तर पर लेट चुका था, और उसकी नजरें सिफ़िया के हर मूवमेंट को ध्यान से देख रही थीं। मैंने सिफ़िया को उसकी चूत के पास से हल्के-हल्के सहलाते हुए उसकी झिझक कम करने की कोशिश की।

“आओ, सिफ़िया। अपनी टांगों को उनके सिर के दोनों ओर फैलाओ और धीरे से उनके चेहरे पर बैठ जाओ,” मैंने उसे गाइड किया।

सिफ़िया ने थोड़ी झिझकते हुए अपनी टांगें उठाईं और धीरे-धीरे संतोष के चेहरे के ऊपर अपनी चूत को ले गई। संतोष ने नीचे से उसकी चूत को निहारते हुए हल्की सी मुस्कान दी, और जैसे ही सिफ़िया ने खुद को उनके चेहरे पर टिकाया, संतोष ने तुरंत अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया।

सिफ़िया की सांसें तेजी से चलने लगीं। उसने हल्की कराहट के साथ अपनी आंखें बंद कर लीं और खुद को इस पल में बहने दिया। मैंने पास खड़े होकर सिफ़िया के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, “बस खुद को छोड़ दो। इसे महसूस करो। तुम्हारे पापा तुम्हें पूरी तरह से सुकून देंगे।”

संतोष ने अपनी जीभ को उसकी चूत के हर कोने पर घुमाना शुरू कर दिया। वह उसकी गहराई को महसूस कर रहा था, और सिफ़िया अब धीरे-धीरे अपनी झिझक को भूलते हुए आनंद में डूबती जा रही थी। उसने अपने हाथों से संतोष के सिर को पकड़ लिया और खुद को और करीब लाने लगी।

“बहुत अच्छा कर रहे हो, संतोष। सिफ़िया को पूरी तरह संतुष्ट करो,” मैंने कहा, जबकि सिफ़िया अब पूरी तरह से इस पल में डूबी हुई थी। उसकी कराहटें अब तेज हो रही थीं, और उसका शरीर हर पल के साथ कांप रहा था।

सिफ़िया अब पूरी तरह से संतोष के चेहरे पर झुकी हुई थी। उसकी सांसें तेज थीं, और उसकी हल्की कराहटें कमरे की खामोशी को तोड़ रही थीं। संतोष की जीभ उसकी चूत के हर हिस्से को चाट रही थी, जैसे वह इस पल को पूरी तरह से जी लेना चाहता हो।

मैंने सिफ़िया की तरफ देखा। उसका शरीर हल्का कांप रहा था, और उसकी पकड़ संतोष के सिर पर और भी मजबूत हो गई थी। मैंने उसकी पीठ पर हाथ रखा और उसे सहारा देते हुए कहा, “डरने की जरूरत नहीं है, सिफ़िया। बस अपने पापा को करने दो। उन्हें तुम्हें इस आनंद में बहने देना है।”

संतोष अब अपनी जीभ को गहराई तक ले जा रहा था। उसने अपनी जीभ से सिफ़िया की चूत के अंदर और बाहर का स्वाद लेना शुरू कर दिया। वह उसकी चूत के कोनों को, हर संवेदनशील हिस्से को छू रहा था। सिफ़िया की कराहटें अब और भी तेज हो गई थीं। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं और खुद को पूरी तरह से इस अनुभव में खो दिया।

मैंने पास खड़े होकर कहा, “बहुत अच्छा कर रहे हो, संतोष। इसे जारी रखो। सिफ़िया, तुमने बहुत अच्छी तरह से खुद को संभाला है। बस, सबकुछ बहने दो।”

सिफ़िया अब अपनी चूत को संतोष के चेहरे पर रगड़ने लगी थी। उसने हल्के-हल्के अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया, जैसे वह अपनी मर्जी से इस पल का आनंद ले रही हो। संतोष ने उसकी इस हरकत को महसूस किया और अपनी जीभ को और तेज चलाना शुरू कर दिया।

सिफ़िया की सांसें तेज हो गईं। उसने हल्के से अपने सिर को पीछे झुका लिया और एक गहरी कराहट के साथ बोली, “ओह… पापा…”

संतोष ने यह सुनकर और भी जोश में अपनी जीभ चलाई। उसने अपनी उंगलियों से सिफ़िया की जांघों को पकड़ लिया और उसे और भी करीब खींच लिया।

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “बहुत अच्छा। अब वह पूरी तरह से तुम्हारे नियंत्रण में है। सिफ़िया, तुम्हें इस पल को पूरी तरह से महसूस करना चाहिए। यह तुम्हारे लिए है।”

सिफ़िया का पूरा शरीर अब थरथराने लगा था। उसकी कराहटें और भी तेज हो गई थीं। मैंने देखा कि उसकी चूत अब पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। संतोष अपनी जीभ से हर बूंद को चाट रहा था, जैसे वह इस पल को कभी खत्म नहीं होने देना चाहता हो।

सिफ़िया की कराहटें अब पूरे कमरे में गूंज रही थीं। उसकी सांसें इतनी तेज हो गई थीं कि उसके सीने का उतार-चढ़ाव साफ दिखाई दे रहा था। उसने अपना सिर पीछे झुका लिया था और अपने हाथों से संतोष के सिर को और कसकर पकड़ लिया था।

“पापा… ओह… प्लीज…,” उसकी आवाज अब थरथराने लगी थी। उसकी चूत पूरी तरह से गीली हो चुकी थी, और संतोष अपनी जीभ को और गहराई तक ले जाते हुए उसकी हर प्रतिक्सिफ़िया का आनंद ले रहा था।

संतोष ने अब अपनी जीभ को तेज़ी से चलाना शुरू कर दिया। वह सिफ़िया की हर कराहट का जवाब अपनी जीभ की हरकतों से दे रहा था। उसने अपनी उंगलियों से सिफ़िया की जांघों को मजबूती से पकड़ रखा था, ताकि वह उसे अपनी ओर और करीब ला सके।

सिफ़िया ने अपनी कमर को हल्का ऊपर उठाते हुए संतोष के चेहरे पर और जोर से अपनी चूत रगड़नी शुरू कर दी। उसकी आवाजें अब और भी गहरी हो गई थीं।

“ओह… पापा… बस… और… ओह…,” उसने गहरी सांसों के बीच कहा। उसकी आवाज में अब दर्द और आनंद का मिश्रण साफ झलक रहा था।

मैंने सिफ़िया की पीठ पर हाथ रखते हुए उसे सहारा दिया और कहा, “डरने की कोई जरूरत नहीं है, बेटा। अपने पापा को सबकुछ करने दो। यह तुम्हारे लिए ही है। बस, खुद को इस पल में बहने दो।”

सिफ़िया ने मेरी बात सुनकर अपनी झिझक को पूरी तरह छोड़ दिया। अब वह अपनी चूत को संतोष के चेहरे पर रगड़ने में पूरी तरह डूब चुकी थी। उसकी आवाजें और भी तेज हो गई थीं।

संतोष ने अब अपनी जीभ को और गहराई तक ले जाते हुए सिफ़िया की चूत के हर कोने को चाटना शुरू कर दिया। उसने सिफ़िया के दाने को अपनी जीभ से दबाया और हल्के-हल्के गोल घुमाने लगा।

“ओह… पापा… ओह… मैं… बस…,” सिफ़िया ने गहरी कराहट के साथ कहा। उसका पूरा शरीर अब कांप रहा था। उसकी सांसें इतनी तेज हो गई थीं कि वह अब अपने शरीर को संभालने में भी कठिनाई महसूस कर रही थी।

मैंने पास खड़े होकर कहा, “संतोष, बहुत अच्छा कर रहे हो। उसे पूरी तरह से महसूस करने दो। वह अब पूरी तरह तैयार है।”

सिफ़िया अब इतनी उत्तेजित हो चुकी थी कि उसने अपना पूरा शरीर संतोष के चेहरे पर झुका दिया। उसकी आवाजें अब और भी तेज हो चुकी थीं।

“ओह… पापा… मैं… बस… रुक नहीं सकती… ओह…,” उसने तेज कराहट के साथ कहा। उसकी चूत से अब पानी बहने लगा था, और संतोष इसे अपनी जीभ से पूरी तरह चाट रहा था।

यह सब देखकर मैंने महसूस किया कि सिफ़िया अब पूरी तरह से इस पल में खो चुकी है। उसकी आवाजों ने माहौल को और भी गरम कर दिया था। संतोष अब पूरी तरह से उसे संतुष्ट करने में डूब चुका था।

मैंने सिफ़िया की ओर देखा, जो अब पूरी तरह से इस पल में खो चुकी थी। उसकी कराहटें धीरे-धीरे शांत हो रही थीं, लेकिन उसकी सांसें अभी भी तेज थीं। मैंने प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा और कहा, “अब चुपचाप लेट जाओ, बेटा। अब तुम्हारी चुदाई होगी। आज तुम्हारी सील टूटेगी।”

सिफ़िया ने हल्के से मेरी ओर देखा, उसकी आंखों में अब झिझक की जगह एक नई समझ थी। वह धीरे-धीरे लेट गई, और मैंने उसके बालों को प्यार से सहलाया।

मैंने कहा, “तुम्हारे पापा अब तुम्हें पूरा करेंगे। तुम इसे महसूस करना और इसे अपनाना। यह तुम्हारे लिए एक नई शुरुआत है।”

उधर संतोष, जो अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था, अपने लंड को अपने हाथों से सहला रहा था। उसका 8 इंच का सख्त लौड़ा अब सिफ़िया की चूत के लिए पूरी तरह तैयार था। मैंने संतोष की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और कहा, “अब संभाल लो अपनी बेटी को। उसे वो सब दो, जो उसे चाहिए।”

लेकिन इससे पहले, मैंने खुद को भी इस पल में शामिल करने का फैसला किया। मैंने धीरे-धीरे अपने सारे कपड़े उतार दिए। संतोष और सिफ़िया दोनों मुझे नंगे देख रहे थे। मैंने सिफ़िया की तरफ बढ़ते हुए कहा, “अब तुम्हें मुझे भी खुश करना है। यह भी तुम्हारी पूजा का हिस्सा है।”

मैंने धीरे-धीरे सिफ़िया के चेहरे पर बैठते हुए अपनी चूत उसके मुंह के पास ला दी। मैंने उसकी आंखों में देखा और कहा, “चाटो, बेटा। इसे अच्छे से चाटो और खाओ। यह तुम्हारे लिए है।”

सिफ़िया ने हल्की झिझक के साथ अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरी चूत को चाटना शुरू किया। उसकी जीभ की नर्मी ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। मैंने हल्की कराहट के साथ अपनी कमर को उसके चेहरे के और करीब लाया।

“हां, बेटा। ऐसे ही… इसे पूरी तरह से महसूस करो।”

उधर, संतोष ने सिफ़िया की टांगों को और फैलाया और अपने लंड को उसकी चूत के दरवाजे पर सेट कर दिया। उसने हल्के से सिफ़िया की चूत के होंठों को अपने लंड से अलग किया और धीरे-धीरे उसे अंदर धकेलने लगा।

सिफ़िया ने मेरे नीचे से कराहते हुए हल्की आवाज निकाली, “आह… प्लीज… मम्मी… यह…”

मैंने उसके बालों को सहलाते हुए कहा, “कुछ नहीं होगा, बेटा। बस खुद को आराम से छोड़ दो। तुम्हारे पापा तुम्हें संभाल लेंगे।”

संतोष ने धीरे-धीरे अपना लंड उसकी चूत में डालना शुरू किया। सिफ़िया का पूरा शरीर सख्त हो गया था, और उसकी चूत की तंग दीवारों ने संतोष के लंड को कसकर पकड़ लिया।

“ओह… चारवी, यह… यह तो बहुत ही टाइट है,” संतोष ने कराहते हुए कहा।

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “धीरे-धीरे, संतोष। यह उसकी पहली बार है। उसे दर्द नहीं होना चाहिए।”

संतोष ने अपनी हरकतों को और नरम कर दिया, लेकिन उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मैंने अपनी चूत को सिफ़िया के मुंह पर रगड़ते हुए उसकी जीभ का आनंद लिया।

सिफ़िया अब पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में थी। उसके चेहरे पर हल्की तकलीफ के साथ-साथ एक नया अनुभव महसूस करने की झलक थी। मेरी चूत पर उसकी जीभ लगातार काम कर रही थी, और मैं उसकी हर हरकत का आनंद ले रही थी।

उधर, संतोष ने धीरे-धीरे अपना लंड सिफ़िया की चूत में धकेलना जारी रखा। उसकी चूत की तंग दीवारें संतोष के लंड को कसकर पकड़ रही थीं। सिफ़िया की हल्की कराहटें अब तेज होने लगी थीं।

“आह… पापा… बहुत टाइट है…,” उसने कराहते हुए कहा।

मैंने उसके बालों को सहलाते हुए कहा, “डरने की जरूरत नहीं है, बेटा। यह दर्द सिर्फ पहली बार के लिए है। उसके बाद तुम्हें सिर्फ आनंद मिलेगा। अपने पापा को अंदर जाने दो।”

संतोष ने धीरे-धीरे अपने लंड को और अंदर धकेला, उसकी हरकतें अब और गहरी हो रही थीं। सिफ़िया का पूरा शरीर अब हल्के से कांपने लगा था। उसकी चूत अब गीली हो चुकी थी, जिससे संतोष के लंड का अंदर-बाहर जाना थोड़ा आसान हो गया था।

मैंने सिफ़िया के चेहरे पर बैठकर अपनी चूत को उसकी जीभ पर और जोर से रगड़ा। “हां, बेटा, ऐसे ही। इसे अच्छे से चाटो। तुम इसे जल्दी सीख रही हो।”

संतोष अब पूरी तरह से सिफ़िया की चूत में खो चुका था। उसने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली थी और अब उसकी हरकतें तेज हो रही थीं। सिफ़िया की आवाजें और भी गहरी हो गईं।

“ओह… मम्मी… प्लीज… यह…,” उसने कराहते हुए कहा।

मैंने उसकी तरफ झुकते हुए कहा, “बस थोड़ा और सह लो, बेटा। यह तुम्हारे लिए जरूरी है। यह तुम्हारे पापा का प्यार है। इसे पूरी तरह से महसूस करो।”

बेटी को उसके पापा से चुदवाया 1-Maa ne baap se beti chudwai

संतोष ने अब अपनी गति और बढ़ा दी। उसकी हर thrust के साथ सिफ़िया का शरीर थोड़ा ऊपर की तरफ उठता और फिर वापस नीचे गिरता। उसकी चूत अब पूरी तरह से संतोष के लंड के हिसाब से खुल चुकी थी।

“ओह… चारवी… यह बहुत गीली और गर्म है,” संतोष ने कराहते हुए कहा।

मैंने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा और कहा, “उसे अच्छा महसूस करा दो, संतोष। यह उसकी पहली बार है। उसे इसे हमेशा याद रखना चाहिए।”

सिफ़िया की आवाजें अब और भी तेज हो गई थीं। उसकी सांसें बेकाबू हो रही थीं, और उसकी चूत से गीलेपन की आवाजें कमरे में गूंज रही थीं। मैं अब खुद को और संभाल नहीं पा रही थी। सिफ़िया की जीभ ने मुझे अंदर तक हिला दिया था।

मैंने सिफ़िया के सिर को थोड़ा और नीचे दबाते हुए कहा, “और गहराई तक, बेटा। इसे और जोर से चाटो। तुम इसे जल्दी सीख रही हो।”

उधर, संतोष अब पूरी ताकत से सिफ़िया की चूत को चोद रहा था। उसका लंड सिफ़िया के अंदर गहराई तक जा रहा था, और हर thrust के साथ उसकी आवाजें और तेज हो रही थीं।

“पापा… आह… यह बहुत…,” उसने बमुश्किल बोलते हुए कहा।

संतोष ने उसकी जांघों को पकड़कर उसे और कसकर पकड़ लिया। अब वह पूरी तरह से नियंत्रण में था। मैंने यह सब देखकर महसूस किया कि यह पल हमारे परिवार के रिश्ते को एक नए स्तर पर ले जा चुका है।

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